Rising street dogs and malaria cases strain health services: शहरों में स्ट्रीट डॉग्स की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है, विशेष रूप से पटना जैसे बड़े शहरों में। हाल के वर्षों में नगर निगम द्वारा कुत्तों की नसबंदी के लिए अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन ये अभियान लंबे समय तक नहीं चलते। इससे कुत्तों की संख्या में कोई खास कमी नहीं आती और वे सड़कों पर लोगों के लिए खतरा बने रहते हैं। रात के समय सड़कों पर चलते हुए लोग अक्सर इन कुत्तों का शिकार हो जाते हैं, लेकिन अब दिन में भी ये कुत्ते लोगों को काट रहे हैं। बच्चों और युवाओं पर इसका सबसे अधिक असर पड़ा है, जिनमें 15 से 30 साल के युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है।
कुत्ते काटने के मामलों में भारी वृद्धि
आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2024 के बीच स्ट्रीट डॉग्स के काटने के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है। 2023-24 में यह आंकड़ा 61.3 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में पटना, जहानाबाद, समस्तीपुर, गया, बेगूसराय और अन्य जिले शामिल हैं। इन हमलों से बचने के लिए लोगों को सरकारी और निजी अस्पतालों में एंटी रेबिज के टीके लगवाने पड़ते हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर भी अतिरिक्त दबाव बढ़ा है।
शहरी क्षेत्रों में मलेरिया का प्रकोप
बिहार के शहरी क्षेत्रों में मलेरिया के मामलों में भी तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। सफाई व्यवस्था में कमी और हर मौसम में मच्छरों के बढ़ते प्रकोप के कारण लोग मलेरिया से पीड़ित हो रहे हैं। 2018-19 में जहां यह संख्या 0.6 प्रतिशत थी, वहीं 2023-24 में यह बढ़कर 6.2 प्रतिशत हो गई है। अधिकांश मलेरिया पीड़ित मरीज सरकारी अस्पतालों में इलाज करवा रहे हैं, जिससे अस्पतालों पर दबाव और बढ़ गया है।
स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ा दबाव
बिहार के अस्पतालों में आने वाले मरीजों में कुता काटने और मलेरिया से पीड़ित लोगों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इसके कारण एंटी रेबिज और मलेरिया की दवाओं पर अस्पतालों का खर्च 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया है। यह स्थिति स्वास्थ्य सेवाओं के लिए गंभीर चुनौती बन गई है और इससे निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।