Ajgaibinath Mahadev Temple located in Sultanganj: सुल्तानगंज में स्थित अजगैबीनाथ महादेव मंदिर हिन्दू धर्म के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहाँ हर साल श्रावणी मेला के दौरान लाखों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने और गंगा जल लेने के लिए आते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस पवित्र स्थल का नाम बदलकर अजगैबीनाथ धाम होना चाहिए।
अजगैबीनाथ धाम की धार्मिक महत्ता
अजगैबीनाथ महादेव का मंदिर सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा के मध्य ग्रेनाइट पत्थर की विशाल चट्टान पर स्थित है। मान्यता है कि मंदिर में स्थापित मनोकामना शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। हर साल सावन में देश-विदेश से श्रद्धालु यहाँ आकर गंगा जल लेकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं और फिर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर देवघर पहुँचते हैं।
स्थानीय मांग और पहल
सुल्तानगंज के स्थानीय लोग और जनप्रतिनिधि इस मंदिर की महत्ता को देखते हुए सुल्तानगंज का नाम बदलकर अजगैबीनाथ धाम करने की मांग कर रहे हैं। इस मांग को लेकर सुल्तानगंज नगर परिषद ने हाल ही में अपनी बोर्ड बैठक में नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया है। स्थानीय विधायक प्रो ललित मंडल ने भी विधानसभा में इस मुद्दे को उठाने की बात कही थी।
सांसद गिरिधारी यादव का समर्थन
बांका के सांसद गिरिधारी यादव ने भी इस बदलाव का समर्थन करते हुए संसद में इस मुद्दे को उठाने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के महत्व को देखते हुए यह नाम परिवर्तन आवश्यक है और वे हर संभव प्रयास करेंगे कि यह बदलाव जल्द से जल्द हो।
श्रावणी मेला और श्रद्धालुओं की भीड़
श्रावणी मेला के दौरान सुल्तानगंज से देवघर तक का पूरा मार्ग श्रद्धालुओं से भरा रहता है। कांवरिया पथ का सबसे बड़ा हिस्सा बांका लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है, जिससे इस क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता और भी बढ़ जाती है। इस महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के नाम परिवर्तन से क्षेत्र की पहचान को और अधिक सुदृढ़ करने का प्रयास किया जा रहा है।
अजगैबीनाथ महादेव मंदिर का नाम बदलकर अजगैबीनाथ धाम करने की पहल न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे स्थानीय लोगों की भावनाओं का भी सम्मान होगा। सांसद गिरिधारी यादव और स्थानीय विधायक के समर्थन से इस पहल को संसद और विधानसभा में उठाकर इसे अमल में लाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे न केवल क्षेत्र की धार्मिक पहचान को बल मिलेगा, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।